रौशनी कुछ ज्यादा है
कुछ नज़र नहीं आ रहा
थोड़ी हल्की हो जाती रौशनी
ज़रा कुछ नज़र आता ।
आँख चौंधिया गयी
जैसे सूरज चढ़ा हो
रात भी कुछ चीज़ थी
दिन से अँधेरी, फ़र्क थी ।
क्यूँ है इतनी ज्यादा
क्या काम है इसका ?
अपना अँधेरा छुपाने का
शायद पर्दा है रौशनी ।
-अनिमेष अग्रवाल